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Bhojpuri kavita (Bhojpuri Poem) II

This is another poem written by me. Hope you will love it like my previous one.This is the complain of a wife to her husband about his ignorance and the pathetic situation of house and her life. Translation of this poem is welcomed. Please do it if possible :)



जोंन्हिये गिनत कटे मोर रतिया,
अब ता सजना सनेहिया पठाव पतीया.......

घटत बढ़त रहे चाँद सारी रतिया,
घरी घरी याद आवे तोहरी सुरतिया,
यदीया फतवे लगे मोर छतिया.

अब ता सजना सनेहिया पठाव पतीया.......


कैसे ले कही सैया मोरे दुरगतिया,
सभ ओर से झांझर भएल घरवा के टटिया
चुवेला पलानी टूटल मोर खटिया

अब ता सजना सनेहिया पठाव पतीया.......

सवने से नैहर गयेल बीया बलमतिया,
ससुरा पे राज़ करतिया सुरसतिया.
हमारो से नहीं होई असो कटिया.

अब ता सजना सनेहिया पठाव पतिया.......

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